मानसिक अस्वस्थता

मानसिक अस्वस्थता

मानसिक अस्वस्थता ऑंखों से दिखाई नहीं पड़ती, इसलिए लोग उसके संबंध में प्राय: बेखबर रहते हैं। पर यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो शरीर से भी कहीं अधिक रुग्ण एवं दुर्बल मन पाए जायेंगे। अनिद्रा, सिरदर्द, स्मरण शक्ति की कमी, मूढ़ता, उन्माद जैसे मस्तिष्कीय रोगों की तो बाढ़ ही आ रही है। चिंता, भय, निराशा, आवेश, निरुत्साह जैसे मनोविकार अधिकतर लोगों को अपना शिकार बनाए हुए अनेक व्यक्तिगत जीवनों को पतनोन्मुख बनाए हुए हैं।

भावनात्मक अस्वस्थता के कारण अधिकांश लोग प्रफुल्लता, उल्लास, साहस, पुरुषार्थ, उदारता, वीरता, सहृ्दयता, सज्जनता जैसे मानवोचित गुणों से वंचित हो रहे हैं। फलस्वरूप मनुष्य के शरीर में रहते हुए भी उनकी जीवात्मा पाशविक स्तर का जीवनयापन कर रही है। ईश्वर प्रदत्त महान महत्ताओं से वह तनिक भी लाभ नहीं उठा पाती है। काश, मनुष्य की भावनाएँ उद्दात्त एवं उत्कृष्ट रही होतीं तो सामान्य परिस्थितियों और सामान्य साधनों के रहते हुए भी उसने महापूरुषों जैसा, नर-रत्नों जैसा प्रकाश एवं आनंदमय जीवन जिया होता।

पं श्रीराम शर्मा आचार्य
युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (३.१६)

An unhealthy mind

Mental health or the lack of it can not be observed with the naked eye, we are often quite unaware of it as a result. On a careful and deeper look, though, we will find that our minds are more unhealthy than our bodies. Mental illnesses such as insomnia, memory issues, headaches, mental fogginess and delirium are on a rapid rise. Our lives are getting pushed into a downward spiral due to mental disorders like excessive worrying, fear, despondency, and apathy.

Emotional disturbances are depriving us of human qualities of joy, happiness, grit, courage, generosity, kindness and compassion. As a result of this deprivation, our human soul is reduced to a subhuman existence, unable to exploit the God-given human possibilities. If only we could cultivate the generous and grand human emotions, we could live an extraordinary life filled with happiness and joy paralleling that of the great souls, even within ordinary circumstances.

Pt. Shriram Sharma Acharya
Yug Nirman Yojana: Darsana, swarupa va karyakrama 66:1.33


👉 टकराव के तीन सिद्धांत

🔶 टकराव का लक्ष्य अन्य व्यक्ति को नीचा दिखाना अथवा व्याकुल करना नहीं है।

🔷 किसी का सामना करना कठिन होता है, क्योंकि कई बार इस का परिणाम यह होता है कि व्यक्ति संताप में डूब जाता है। आप जिस से टकराव कर रहे हैं वह व्यक्ति असहमति प्रकट कर सकता है, विरोध कर सकता है, अथवा यदि वह ईमानदार हो तो क्षमा भी मांग सकता है। परंतु यह संवाद कभी भी इतना सरल एवं सुखद नहीं होता। यह संवाद दो दलों या सरकारों के बीच हो सकता है, या फिर पती-पत्नी, माता-पिता और संतान, दो मित्र या एक प्रबंधक एवं कार्यकर्ता के बीच हो सकता है। कभी कभी सकारात्मक एवं रचनात्मक रूप से आमना सामना करना ही असहमति को दूर करने का एक मात्र मार्ग होता है। किसी से......Read More Please Click

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